बस्ती। जिला और मेडिकल कॉलेज स्तर के अस्पतालों में मरीजों के साथ खेल हो रहा है। अक्सर जांच से संबंधित मशीनें खराब होने की शिकायतें मिल रही हैं, जिससे मरीजों को निजी सेंटरों तक भेजा जा रहा है। यह व्यवस्था मरीज माफिया के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, जो इन हालात का भरपूर लाभ उठा रहे हैं।
जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड जांच पिछले एक महीने से बंद है, जबकि मेडिकल कॉलेज के ओपेक चिकित्सालय कैली में सीटी स्कैन की सेवाएं पिछले पखवाड़े से ठप पड़ी हैं। यहां मशीन में यांत्रिक खराबी की बात कही जा रही है, लेकिन मरीजों को निजी जांच केंद्रों पर भेजने का सिलसिला जारी है।
रुधौली के सुभाष ने बताया कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी नर्सिंग होम और जांच केंद्रों पर न तो उतनी सुविधाएं हैं और न ही डिग्रीधारी विशेषज्ञ उपलब्ध होते हैं। इसके बावजूद, मरीजों को इन निजी सेंटरों पर भेजा जा रहा है। यह खेल पूरी तरह से मरीज माफिया की साजिश का परिणाम है। यदि सरकारी अस्पतालों में नियमित जांच सेवाएं जारी रहतीं, तो मरीजों को बाहर भेजने का कोई मौका ही न मिलता।
कप्तानगंज के विनोद का कहना है कि मशीनें अपने आप खराब नहीं होतीं, बल्कि उनकी गारंटी और मरम्मत की सुविधा भी होती है। इसके बावजूद, अक्सर अस्पतालों में जांच या ऑपरेशन थिएटर की मशीनें खराब होने की शिकायतें आती रहती हैं, ताकि मरीजों को निजी सेंटरों तक भेजने का बहाना बना रहे। यह स्थिति जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड जांच की बंदी से स्पष्ट हो जाती है, जो पिछले छह महीने से ठप है। हालांकि, यहां मशीन खराब नहीं है, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट की कमी के कारण सेंटर बंद पड़ा है।
मरीजों की समस्या तब और बढ़ जाती है जब चिकित्सक ओपीडी से लेकर इमरजेंसी तक, पेट संबंधी और अन्य बीमारियों में अल्ट्रासाउंड जांच की सलाह देते हैं। बाद में मरीज माफिया के एजेंट सक्रिय होकर इन मरीजों को निजी जांच केंद्रों पर ले जाते हैं, जहां उनसे मोटी रकम वसूली जाती है।
मुंडेरवा के मो. फारूक ने बताया कि वह अपने भाई को दिखाने जिला अस्पताल आए थे। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड जांच की सलाह दी, लेकिन तुरंत ही एक युवक उन्हें बाहर के निजी सेंटर पर ले गया, जहां उन्हें 800 रुपये जमा कराकर अल्ट्रासाउंड करवाना पड़ा।
यह पूरी स्थिति अस्पतालों में मौजूद भ्रष्ट तंत्र की ओर इशारा करती है, जहां मरीजों की परेशानियों का फायदा उठाकर उन्हें निजी सेंटरों पर भेजा जा रहा है।
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