ट्रामा सेंटर का ट्रामा :ओटी और एक्स-रे बंद, क्या मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा है?

बस्ती। जिला अस्पताल के ट्रामा सेंटर में भी ड्रामा है। यह सेंटर सिर्फ कागजों में चल रहा है। असलियत में यहां ट्रामा सेंटर जैसी कोई सुविधा नहीं है। गंभीर स्थिति में त्वरित जांच, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और फटाफट ऑपरेशन की सुविधाएं दूर की ढोल बजने जैसी है। यहां दिखाने के लिए एक इमरजेंसी कक्ष और ड्रेसिंग हाॅल ही खुला मिलेगा। बाकी कक्ष के दरवाजे बंद ही रहते हैं।

पांच साल पहले हुई थी स्थापना, पर सुविधाएं नदारद

पांच साल पहले जिला अस्पताल में ट्रामा सेंटर की स्थापना हुई थी। इसके लिए परिसर में पृथक भवन तैयार हुआ। इसमें मिनी ओटी, ड्रेसिंग, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जांच कक्ष बनाए गए। ट्रामा में आने वाले मरीजों के लिए 10 बेड का पृथक वार्ड, चिकित्सक और स्टॉफ के लिए अलग-अलग रूम भी बनाए गए। ऑपरेशन एवं जांच संबंधी कीमती उपकरण भी उपलब्ध हुए। मगर, बनने के कुछ ही दिनों बाद से यह ट्रामा सेंटर निष्क्रिय मोड में चला गया।

तीन साल से दयनीय स्थिति, कागजों में ही चल रहा ट्रामा सेंटर

तीन साल से यह अपनी दयनीय हालत से उबर नहीं पाया है। अस्पताल प्रशासन कागज में इसे ट्रामा सेंटर मान रहा है। इसके संचालन पर हर माह अच्छा खासा बजट भी खपत हो रहा है। बावजूद इसके मार्ग दुर्घटना में घायल या विभिन्न बीमारियों के गंभीर मरीजों को यहां पहुंचने के बाद ट्रामा सेंटर जैसी कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है। यदि स्थिति संभलने लायक होती है तो प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करा दिया जाता है। अन्यथा गंभीर स्थिति बताकर बिना भर्ती किए ही रेफर कर दिया जा रहा है।

ट्रामा सेंटर में मरीजों की बदहाली

बुधवार को भी नजारा कुछ ऐसा ही देखने को मिला। ट्रामा सेंटर में पहुंचने वाले मरीज बरामदे में ही इधर-उधर स्ट्रेचर पर पड़े रहे। परिजन अपने मरीज को डॉक्टर को दिखाने के लिए दौड़ भाग करते नजर आए। ड्रेसिंग कक्ष और उसके बाहर भी दर्द से कराहते मरीज देखे गए। इनके पास डीफार्मा, बीएससी नर्सिंग कोर्स पूरा करने वाले प्रशिक्षुओं की भीड़ थी। अस्पताल के चिकित्सक एवं पैरामेडिकल स्टॉफ नजर नहीं आए। वातानुकूलित इमरजेंसी कक्ष में एक चिकित्सक और कुछ स्टाॅफ मौजूद मिले। बगल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती की गई गायत्री देवी के परिजन समुचित इलाज होते न देख रेफर कराने के लिए दौड़ते रहे।

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केवल मिल रही इमरजेंसी सेवा

ट्रामा सेंटर जिला अस्पताल का सिर्फ इमरजेंसी कक्ष बनकर रह गया है। यहां ज्यादातर मारपीट में घायल, उल्टी-दस्त, बुखार, दुर्घटनाओं में सामान्य फ्रैक्चर, हल्की चोट, विषैले जीव-जंतुओं के काटने वाले मरीजों का ही प्राथमिक उपचार हो पा रहा है। ऐसे मरीजों को तत्काल प्राथमिक उपचार देकर जरूरत के हिसाब से इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करा दिया जा रहा है। इसके बाद उन्हें संबंधित विषय के चिकित्सक के सुपुर्दगी में कर दिया जा रहा है।

नहीं हो रहा एक्स-रे, ओटी बंद

ट्रामा सेंटर की ओटी बंद चल रही है। इसमें रखे उपकरण भी उपयोग में न आने की वजह से जंग खा रहे हैं। एक्स-रे इंस्ट्रूमेंट भी उपयोग न होने से बेमतलब साबित हो रहा है। केवल ड्रेसिंग कक्ष ही उपयोग में आ रहा है। इसके आगे बनाए गए वार्ड, एक्स-रे, ओटी कक्ष, चिकित्सक तथा स्टॉफ कक्ष में मरीज और तीमारदारों का प्रवेश वर्जित है। यहां ड्यूटी के दौरान तैनात डॉक्टर और स्टाॅफ ही अंदर प्रवेश करके समय बिताते हैं।

24 घंटे नहीं रहती चिकित्सकों की टीम

ट्रामा सेंटर का आशय 24 घंटे चिकित्सक एवं स्टॉफ की टीम मौजूद रहनी चाहिए, ताकि क्रिटिकल मरीजों को तत्काल संभाला जा सकें। मगर, इमरजेंसी सेवा के लिए केवल एक चिकित्सक ही यहां तैनात रहते हैं। इसके अलावा ट्रामा सेंटर संचालित करने के लिए स्टॉफ की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि वार्ड बॉय और स्वीपर भी नहीं तैनात किए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि इस ट्रामा सेंटर की उपयोगिता न के बराबर है।

40 से 50 मरीजों की आवक

सामान्य दिनों में यहां 24 घंटे के भीतर 40 से 50 मरीजों की आवक है। मगर इसमें से गंभीर मरीज बिना भर्ती किए ही प्राथमिक उपचार के बाद उच्च मेडिकल संस्थान के लिए लौटा दिए जा रहे हैं। जिससे इनकी आवक का रिकार्ड नहीं बन पाता है। वहीं सामान्य मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद भर्ती कर लिया जा रहा है। यही वजह है कि यहां रिकार्ड में मरीजों की संख्या 20 से 30 तक ही है। प्रतिदिन औसतन 10 गंभीर हालत वाले मरीज लौटाए जा रहे हैं। ट्रामा सेंटर से निकलने के बाद मरीजों को भर्ती रखने के लिए वातानुकूलित वार्ड भी बनाया गया था। मगर यह बंद कर दिया गया है। अब इमरजेंसी में आने वाले मरीज सामान्य वार्ड में भर्ती किए जा रहे हैं।

होनी चाहिए यह व्यवस्था

  • ट्रामा सेंटर में ऑपरेशन एवं अन्य स्थिति से निपटने के लिए आर्थो सर्जन, सर्जन एवं एमबीबीएस चिकित्सकों की टीम भी 24 घंटे मौजूद रहनी चाहिए।
  • चोटिल एवं घायल एवं सांस फूलने वाले मरीजों के लिए एक्सरे, सिटी स्कैन की भी सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
  • पेट दर्द से कराहते मरीजों के लिए अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • बर्न रोगियों के लिए एसी वार्ड अनिवार्य है।
  • मिनी ऑपरेशन से संबंधित सभी छोटे-बड़े उपकरण होने चाहिए।
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कोट

डॉ. वीके सोनकर, प्रमुख अधीक्षक, जिला अस्पताल: “ट्रामा सेंटर 24 घंटे संचालित किया जा रहा है। जरूरत पड़ने पर ओटी रूम भी खुलता है। ट्रामा सेंटर का एक्स-रे बंद है तो अस्पताल में करा दिया जाता है। सिटी स्कैन की व्यवस्था अस्पताल में हैं। अल्ट्रासाउंड के लिए विशेषज्ञ नहीं है।”

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