लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के दूरगामी परिणाम होंगे। सरकार पहले के दो कार्यकालों की तरह इस बार कड़े फैसले लेने में कमजोर साबित हो सकती है। गठबंधन के सहयोगी अपनी मांगों को लेकर अड़ भी सकते हैं और सरकार के फैसलों में अड़ंगा भी लगा सकते हैं। जनता के फैसले का क्या होगा असर… इस विश्लेषण में पढ़िए।
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम हम सबके सामने हैं। एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी बहुमत से दूर रह गई है। गठबंधन के दो सहयोगी दल गेमचेंजर बनकर उभरे हैं। जनता के इस फैसले के मायने क्या हैं? इससे गठबंधन सरकार कैसे चलेगी? संसद की राह कैसी रहेगी? इन सभी सवालों उत्तर बता रहा है हमारा यह विश्लेषण।
संसद के अंदर क्या होगा
भाजपा के पास बहुमत न होने की वजह से ऐसी स्थितियां बन सकती हैं, जहां पार्टी को अपने सहयोगियों को मनाना भी पड़ेगा और उन पर निर्भरता भी बढ़ेगी। एनडीए के घटक दल भाजपा के सभी फैसलों को मान लें, ऐसा होना मुश्किल है। इसके साथ ही हर महत्वपूर्ण विषय एवं प्रस्ताव पर जदयू तथा टीडीपी की सहमति लेनी होगी। इसका असर सदन के संचालन में भी दिखाई दे सकता है। बताते चलें कि एनडीए और आइएनडीआइए के बीच केवल 60 सीटों का अंतर है।
नीतीश-नायडू का पिछला रिकॉर्ड
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जब जिस भी गठबंधन का हिस्सा रहे हैं, वहां उन्होंने अपनी बातें हमेशा ही मनवाई हैं। जब केंद्रीय मंत्रीमंडल का गठन होगा और विभागों का बंटवारा होगा, तब यही घटक दल मनपसंद मंत्रालय के लिए अड़ भी सकते हैं। आगामी बजट और अन्य अहम नीतियों पर वे अपनी मांगों का अड़ंगा भी लगा सकते हैं।
बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोनों नेता पहले भी उठाते रहे हैं, जिसे पिछले दस वर्षों के दौरान मोदी सरकार खारिज करती रही है। मगर, अब मुमकिन है कि उनकी इन मांगों को मान लिया जाए। इसके साथ ही भाजपा के महत्वपूर्ण निर्णय जैसे समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) तथा एक देश एक कानून जैसे विषय ठंडे बस्ते में जा सकते हैं।
संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से पार्टी का ही एक धड़ा दबी जुबान में आत्ममंथन की बात उठा सकता है। पार्टी को संगठन तथा प्रमुख चेहरों के बारे में पुनर्विचार करने के लिए तैयार किया जा सकता है। अब यह सवाल भी उठेगा कि जेपी नड्डा के बाद अगला पार्टी अध्यक्ष कौन होगा?
क्या रणनीतिक काम में मोदी और शाह पर निर्भर राज्य इकाईयां स्वयं फैसले ले सकेंगी? क्या लोकसभा चुनाव के इस बार के परिणाम के बाद पार्टी आरएसएस के मार्गदर्शन की मांग करेगी? क्या उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्य में कमजोर हुए अपने जनाधार के लिए भाजपा नई योजना के साथ काम शुरू करेगी?
मोदी मैजिक की फिर दरकार
विपक्ष इस बात को लेकर हमलावर होगा कि मोदी मैजिक अब खत्म हो गया है। लिहाजा, इसे रोकने के लिए पीएम मोदी कुछ लोक लुभावन योजनाएं लेकर आ सकते हैं। वह कुछ ऐसी नीतियों की घोषणा कर सकते हैं, जो न सिर्फ सुर्खियों में रहें, बल्कि प्रमुख सामाजिक समूहों को भी ध्यान में रखकर लाई गई हों। ऐसे में महिलाओं और दलितों के लिए जल्द ही कोई विशेष नीति की घोषणा की जा सकती है।
इन 3 राज्यों में बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में अगले कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकारें हैं और दोनों ही राज्यों में लोकसभा के चुनाव नतीजों में भाजपा का प्रदर्शन शानदार नहीं रहा है।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में हर बार की तरह ही इस बार भी प्रतिष्ठा की लड़ाई है। यहां आम आदमी पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों को जीत चुकी है, जबकि भाजपा ने साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। भाजपा को यहां की विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा, ताकि वह इस नजरिये से बच सके कि पार्टी धीमी रफ्तार से जनाधार खो रही है।