6 सितंबर की सुबह करीब 7:15 बजे, नेपाल में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के कुछ ही घंटों बाद एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। कोशी प्रांत के मंत्री राम बहादुर मगर की सरकारी जीप ने ललितपुर के हरिसिद्धि माध्यमिक विद्यालय के पास 11 वर्षीय छात्रा उषा मगर सुनुवार को टक्कर मार दी।
सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखाई देता है कि हादसे के बाद बच्ची सड़क किनारे गिर पड़ी। गनीमत रही कि उसकी जान बच गई, लेकिन सरकारी काफिले द्वारा घायल बच्ची को वहीं छोड़कर आगे निकल जाने की तस्वीर ने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया।
पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस घटना को “साधारण दुर्घटना” बताते हुए सिर्फ इलाज का खर्च उठाने की बात कही। लेकिन कई लोगों को यह बयान असंवेदनशील और सत्ता के अहंकार का प्रतीक लगा। पोखरा विश्वविद्यालय के शिक्षक योगराज लामिछाने का कहना था कि, “अगर किसी मंत्री की गाड़ी छात्रा को कुचल दे और प्रधानमंत्री इसे मामूली कहकर टाल दें, तो यह आम जनता को कैसा संदेश देता है?”
युवा वर्ग पहले से ही बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से नाराज़ था। समाजशास्त्र की छात्रा मीरा थापा ने कहा कि इस बच्ची को सड़क पर छोड़ देने की घटना ने सबकी सोच बदल दी—”हमारी तकलीफों को नजरअंदाज कर दिया गया। यही गुस्से की असली वजह है।”
विश्व बैंक के अनुसार, नेपाल में 15-24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोज़गारी दर 20% से अधिक है। लाखों युवा हर साल खाड़ी देशों और मलेशिया की ओर पलायन कर रहे हैं, जबकि देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा अब विदेश से आने वाले पैसों पर निर्भर है।
भ्रष्टाचार, मंत्रालयों में राजनीतिक परिवारों का दबदबा और “नेपो किड्स” द्वारा सोशल मीडिया पर शानो-शौकत दिखाना भी गुस्से की बड़ी वजह बनी। एक प्रदर्शनकारी ने कहा—”वे टिकटॉक और इंस्टाग्राम पर ऐशो-आराम दिखाते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि पैसा कहां से आता है।”
विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया बैन ने जनता की नाराज़गी को और भड़का दिया। काठमांडू की सड़कों पर “ओली चोर, देश छोड़ो” जैसे नारे गूंजने लगे। इतिहास के छात्र बिबेक अधिकारी ने कहा, “हम लोकतंत्र की बातें सुनकर बड़े हुए, लेकिन असल में मंत्री परिवारों का राजतंत्र झेल रहे हैं।”
नेपाल कांग्रेस के नेता एनपी साउद ने माना कि भ्रष्टाचार असली समस्या है, लेकिन उन्होंने इसका समाधान संविधान और क़ानूनी प्रक्रिया के ज़रिए करने की अपील की। वहीं प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह लड़ाई अब सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि इंसाफ और बदलाव की है।