महर्षि दयानन्द सरस्वती का जन्म फाल्गुन कृष्ण दशमी तदनुसार 12फरवरी सन 1824 को गुजरात के टंकारा ग्राम में हुआ था। आज इसी तिथि को देश उनकी दो सौवीं जयंती मना रहा है। इसी कड़ी में स्वामी दयानन्द विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती में उनकी जयंती के अवसर पर वैदिक यज्ञ और विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर बच्चों और शिक्षकों ने उनके द्वारा किए गए दो सौ उपकार गिनाए। कार्यक्रम में उपस्थित ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने बताया कि युग पुरुष महर्षि दयानंद सरस्वती एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने समाज में पनप रही हर बुराई का खुलकर विरोध किया, भारतवर्ष में व्याप्त हर पाखंड-ढोंग, सामाजिक कुरूतियो, अंग्रेजी शासन का डटकर विरोध किया, समाज, देश धर्म के विरोधियों तथा विधर्मियों से जमकर लोहा लिया। वे भारतीय प्राचीन सत्य सनातन वैदिक संस्कृति सभ्यता के पुनरोद्धारक तथा समाज सुधारक व उद्धारक के लिए जाने जाते है।
यज्ञ कराते हुए गरुण ध्वज पाण्डेय ने बताया कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सम्पूर्ण मानव जाति को वेदों की ओर लौटने का नारा देकर उन्हें सन्मार्ग दिखाया। उनसे प्रभावित होकर अनगिनत क्रान्तिकारी देश को अन्याय, अभाव और अंधकार से बचाने के तैयार हुए इसके लिए आज पूरी दुनिया के लोग वैदिक सिद्धान्त को ग्रहण करके सबके लिए पथ प्रदर्शक बने हुए हैं।
इस अवसर पर प्रधानाध्यापक आदित्य नारायण गिरि, शिक्षक अनूप कुमार त्रिपाठी, अरविन्द श्रीवास्तव, दिनेश मौर्य, नितीश कुमार, अनीशा मिश्रा महक मिश्रा, कुमकुम, साक्षी, श्रेया, प्रियंका आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
गरुण ध्वज पाण्डेय