बस्ती: नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म पर फांसी की सजा, ये हैं नए कानून

बस्ती। भारतीय न्याय संहिता में किए गए संशोधनों के तहत, नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म का आरोप सिद्ध होने पर दोषियों को फांसी की सजा दी जा सकती है। वहीं, अगर यही घटना बालिग के साथ होती है, तो दोषियों को 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिल सकती है। पहले यह मामला आईपीसी की धारा 376 डी के तहत आता था, लेकिन अब नाबालिग पीड़िता के मामलों में इसे उपधारा 70 (2) के तहत रखा गया है। इस उपधारा में आजीवन कारावास के साथ-साथ वैकल्पिक दंड के रूप में मृत्यु दंड भी शामिल है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश प्रताप सिंह का बयान

वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश प्रताप सिंह ने बताया कि नए कानून में नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। नाबालिग के साथ गैंगरेप को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके अतिरिक्त, नए कानून में मॉब लिंचिंग के दोषियों को भी सजा दिलाने का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि जब पांच या उससे अधिक लोग जाति या समुदाय के आधार पर किसी की हत्या करते हैं, तो उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिलेगी।

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी नारायण का बयान

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी नारायण ने बताया कि मॉब लिंचिंग में शामिल व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उम्रकैद या मौत की सजा के साथ-साथ जुर्माना की सजा भी मिल सकती है। 163 साल पुराने आईपीसी की जगह, नए कानून में दोषियों को सामाजिक सेवा करने का भी प्रावधान किया गया है। अगर किसी ने शादी का धोखा देकर यौन संबंध बनाया, तो उसे 10 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा, नौकरी या अपनी पहचान छिपाकर शादी के लिए धोखा देने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है।

संगठित अपराध पर कड़ी सजा

नए कानून में संगठित अपराध जैसे अपहरण, डकैती, गाड़ी की चोरी, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, और साइबर क्राइम के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कामों पर भी सख्त सजा का प्रावधान है।

विचाराधीन बंदियों की जमानत में बदलाव

नए कानून में विचाराधीन बंदियों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है। अगर किसी को पहली बार अपराधी माना गया है, तो वह अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत प्राप्त कर सकता है। हालांकि, यह प्रावधान आजीवन कारावास की सजा वाले अपराधियों पर लागू नहीं होता है।

इलेक्ट्रॉनिक सबूत की अनिवार्यता

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी नारायण ने बताया कि नए कानून में सात साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अनिवार्य हो गई है। फोरेंसिक एक्सपर्ट्स को अपराध स्थल से सबूतों को इकट्ठा और रिकॉर्ड करना होगा। अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा का अभाव है, तो वह दूसरे राज्य की सुविधा का उपयोग कर सकता है। न्यायालयों की व्यवस्था के तहत अब इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स की विस्तृत जानकारी कोर्ट को देनी होगी, जो पहले एफिडेविट तक सीमित होती थी।

Bindesh Yadav
Bindesh Yadavhttps://newsxpresslive.com
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