बस्ती। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लगातार करारी हार के बावजूद भाजपा सचेत नहीं हो पाई। चुनावी बिगुल बजते ही पार्टी के अंदर बिखराव और अंतर्कलह ने विपक्ष को लाभ पहुंचाया।
गोलबंदी और अंतर्कलह
सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन भाजपा में गोलबंदी और अंतर्कलह दिन-ब-दिन बढ़ती गई। जैसे ही लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा, पार्टी में खेमेबंदी शुरू हो गई। शुरुआत में लगा कि यह टिकट के लिए दावेदारी का दौर है और प्रत्याशी घोषित होने के बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने चेहरा बदलने के बजाय लगातार तीसरी बार सांसद हरीश द्विवेदी पर भरोसा जताया। इसके बाद अंतर्कलह और तेज हो गई और अपने ही लोग अलग होते गए। संगठन और प्रत्याशी इस बिखराव को रोकने में असफल रहे।
2019 की सफलता
2019 के चुनाव के बाद भाजपा का जिले में दबदबा ऐसा हुआ कि लोकसभा से लेकर विधानसभा सीट तक विपक्ष कहीं काबिज नहीं हो पाया। पांच विधायक और सांसद पद भाजपा के पास थे। लेकिन इस स्वर्णिम अवसर को भाजपा सहेज नहीं पाई। तत्कालीन विधायक और सांसद के बीच खींचतान की स्थिति सामने आती रही। 2022 के पहले एक-दो बार प्रभारी मंत्री के सामने सरकारी बैठकों में भी भाजपा का अंतर्विरोध सामने आया।
2022 विधानसभा चुनाव
2022 का विधानसभा चुनाव आते ही पार्टी दिग्गजों की आपसी खींचतान और बढ़ गई। सीटिंग एमएलए ही प्रत्याशी बनाए गए। मोदी-योगी लहर के बावजूद भाजपा को अंतर्विरोध से जूझना पड़ा। बस्ती सदर से तत्कालीन विधायक दयाराम चौधरी, रुधौली से संजय जायसवाल, कप्तानगंज से सीपी शुक्ल, और महादेवा से रवि सोनकर चुनाव हार गए। सपा और सुभासपा के प्रत्याशियों को भाजपा के अंतर्विरोध का लाभ मिला। भाजपा की झोली में केवल हर्रैया से अजय सिंह बचे। विपक्ष मजबूत हुआ और भाजपा में खेमेबंदी और बढ़ गई।
सांसद और विधायक के बीच अनबन
सांसद हरीश द्विवेदी का टिकट घोषित होने के कुछ ही दिनों बाद भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र ने बगावत कर बसपा का दामन थाम लिया। बाद में उनका टिकट कट गया और विपक्ष ने इसका ठीकरा भी भाजपा पर फोड़ा। दयाशंकर सपा में शामिल होकर गठबंधन प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी के साथ प्रचार में जुट गए। संगठन के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी और नेता चुनाव में सक्रिय नहीं दिखे।
हर्रैया में डैमेज कंट्रोल
इस चुनाव में हर्रैया और कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। हर्रैया में अंतर्विरोध ज्यादा था। डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा प्रत्याशी अपनों को मनाने में असफल रहे। हर्रैया से चंद्रमणि पांडेय सुदामा और पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह को भाजपा में शामिल कराया गया। यह प्रयोग वोट टूटने से रोकने में सफल रहा और गठबंधन प्रत्याशी से महज 2814 मतों की बढ़त मिली। कप्तानगंज में गठबंधन प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी को 32439 मतों की बढ़त मिली।
जिलाध्यक्ष बदलने का निर्णय
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले 2023 में भाजपा ने जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल को बदलकर विवेकानंद मिश्र को नया जिलाध्यक्ष बनाया। इस बदलाव ने पार्टी के अंदर लामबंदी को बढ़ाया। कुछ लोगों ने इसका ठीकरा तत्कालीन सांसद पर फोड़ा।
जिला पंचायत अध्यक्ष से अनबन
चुनाव से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी से भी सांसद का अनबन सामने आया। जिला पंचायत सदस्य कई बार जिला पंचायत अध्यक्ष की घेरेबंदी करते दिखे। हालांकि, लोकसभा चुनाव में संजय चौधरी सांसद के साथ हर मौके पर नजर आए।
भाजपा की हार के पीछे अंतर्विरोध और खेमेबंदी बड़ी वजह रही। मोदी-योगी लहर के बावजूद कंडीडेट चेंज न होने और पार्टी के भीतर अंतर्विरोध के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।