शहर की सड़कें जाम से जूझ रही हैं: तीन किमी का सफर, दस किमी का इंतजार!

बस्ती शहर में तीन किमी का सफर हर किसी को अखरने लगता है। कदम-कदम पर बाधा है। न दुकानदार हद में है और न ही ठेला-गिमटी की कोई जद है। चार पहिया वाहन से चलने वाले लोग भी अलग जिद में हैं। सड़क पर ही गाड़ी खड़ी कर काम निपटाने लगते हैं। आम राहगीर किधर से निकले, कहां जाएं इसकी चिंता किसी को नहीं है। यह झंझावत रोजाना उत्पन्न होती है। यही वजह है कि कचहरी से गांधीनगर होकर रोडवेज तक का सफर हर किसी को अखरने लगता है।

बेतरतीब व्यवस्था

शहर में बेतरतीब व्यवस्था में यातायात संचालित हो रही है। कहीं आवागमन ठप है तो कहीं रेंगते हुए वाहन नजर आते हैं। स्कूटी, बाइक, ऑटो, कार पर चलने वाले व राहगीर जाम से परेशान हैं। स्कूल, दफ्तर, स्टेशन, अस्पताल चाहे जहां पहुंचने की जल्दी हो, यदि समय की बचत लेकर नहीं चलेंगे तो इस शहर में झेल जाएंगे। इस समस्या से निजात दिलाने में कोई बड़ी चुनौती भी नहीं है। बस आमजन में यातायात नियमों के प्रति थोड़ी समझदारी हो तो बात बन जाएगी।

राहगीर की पीड़ा

राहगीर भी मान रहे हैं खाली होनी चाहिए सड़क। राहगीर भी यह मान रहे हैं कि यदि सड़क खाली हो जाए तो जाम की समस्या लगभग खत्म हो जाएगी। अक्सर कोई न कोई अवरोध होने के कारण जगह-जगह शहरी आवागमन प्रभावित होता है। इस पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं है।

बड़े वाहन की समस्या

गांधीनगर की सड़क दस मीटर चौड़ी है। मगर, यहां जैसे ही स्कूल बस, एंबुलेंस, डाक विभाग एवं बैंक सिक्योरिटी की बड़ी गाड़ी पहुंचती है छोटे वाहनों का निकलना मुश्किल हो जाता है। अतिक्रमण के चलते सड़क के बचे हुए हिस्से में यह वाहन धीमी गति में आगे बढ़ते हैं। उसके पीछे दो पहिया, कार, ऑटो जैसे छोटे वाहनों की कतार लगी रहती है। उन्हें अगल- बगल से ओवरटेक करने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है।

कोट

यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नए सिरे से योजना तैयार की जा रही है। सड़क को खाली रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि मनमाने ढंग से सड़क पर कोई गाड़ी खड़ी करेगा, ठेला आदि लगाएगा तो कार्रवाई होगी। -सत्येंद्र भूषण त्रिपाठी, सीओ यातायात

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