बस्ती, उत्तर प्रदेश।
मुख्यमंत्री पंचायत प्रोत्साहन योजना में घोटाले की बू, माकपा ने उठाई आवाज़
उत्तर प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री पंचायत प्रोत्साहन पुरस्कार योजना जनपद बस्ती में भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े का अड्डा बनती जा रही है। इस योजना के तहत ग्राम पंचायतों को पुरस्कृत करने की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं उजागर हुई हैं। योजना के अंतर्गत चुनी गई ग्राम पंचायतों के चयन में शासन की गाइडलाइंस और मानकों को नजरअंदाज किया गया है। इस गंभीर मामले में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर विस्तृत शिकायत सौंपी है।
शिकायत में बताया गया है कि पुरस्कार योजना के अंतर्गत थीम आधारित 50 सवालों के आधार पर ग्राम पंचायतों को अंक देने की व्यवस्था थी, लेकिन इसमें मनोमानी और फर्जीवाड़ा कर कुछ खास पंचायतों को चुन लिया गया। सोशल मीडिया से फोटो उठाकर वेबसाइट पर अपलोड किए गए और जमीनी हकीकत से कोसों दूर रिपोर्ट तैयार की गई।
जांच के आदेश, निष्पक्षता का वादा
शिकायत की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) को स्वयं जांच करने की संस्तुति की है। सीडीओ ने मामले की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच का भरोसा दिलाया है।
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा? माकपा के आरोपों की झलक:
- खुशहालगंज ग्राम पंचायत (दुबौलिया, हर्रैया): बाल मैत्री शौचालय का निर्माण ज़मीन पर अधूरा, लेकिन वेबसाइट पर फोटोशॉप की गई तस्वीर अपलोड कर पूर्ण दिखाया गया।

- सकरदहा ग्राम पंचायत: कागजों में खेल का मैदान, पार्क और ओपन जिम दर्शाए गए, जबकि मौके पर इनका कोई नामोनिशान नहीं।

- बहादुरपुर ब्लॉक की बेइली पंचायत: केवल ओवरहेड टैंक बनवाया गया, सप्लाई लाइन और कनेक्शन नहीं। जर्जर आंगनबाड़ी केंद्र और टूटा-फूटा शौचालय – फिर भी अंक दे दिए गए।
- बेलगड़ी पंचायत (रामनगर): खेल का मैदान, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, आंगनबाड़ी भवन — सभी सुविधाएं कागज़ों में दिखाकर अंक दिलवा दिए गए।

- महसौ पंचायत (बस्ती सदर): कई मानकों का उल्लंघन होने के बावजूद पंचायत को पुरस्कार के लिए चुना गया।

प्रशासनिक लापरवाही और जवाबदेही का सवाल
माकपा नेता कामरेड के.के. तिवारी ने बताया कि चयन प्रक्रिया में 20 पंचायतों की सूची तैयार की गई थी, जिसमें से 5 का अंतिम चयन किया गया। इन पंचायतों के चयन में भौतिक सत्यापन और अभिलेखीय जांच में भारी गड़बड़ियां की गईं। आरोप है कि जिन अधिकारियों को सत्यापन की जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने स्वयं स्थल पर जाकर कोई जांच नहीं की, बल्कि चंद पंचायत सचिवों द्वारा तैयार की गई कागजी फाइलों के आधार पर अंक प्रदान कर दिए।
कामरेड तिवारी ने यह भी कहा कि जनपद में कई ग्राम पंचायतें ऐसी थीं जिनका काम चयनित पंचायतों से बेहतर था, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टतंत्र की साज़िश के चलते उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
माकपा की मांग
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। पार्टी ने स्पष्ट कहा है कि यदि इस मामले को दबाने की कोशिश की गई तो वह जन आंदोलन की राह पर भी जा सकती है।