महान क्रांतिकारी, पिछड़े वर्ग के मसीहा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जन्म जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं। उन्होंने अपने जीवन को समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनकी सादगी, ईमानदारी और संघर्षशील व्यक्तित्व ने उन्हें जननायक के रूप में स्थापित किया।
सादगी की मिसाल
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी कर्पूरी ठाकुर का जीवन अत्यंत साधारण था। फटा हुआ कुर्ता, टूटी चप्पल, और बिखरे बाल उनकी पहचान थे। उनकी सादगी को लेकर एक बार एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ इस पर चंद्रशेखर जी ने अपने कुर्ते को फैलाते हुए ‘कर्पूरी जी के कुर्ता फंड’ के लिए दान मांगा। जब कुछ राशि एकत्र हुई, तो उसे कर्पूरी ठाकुर जी को सौंपते हुए कहा गया, ‘इससे अपना कुर्ता-धोती खरीद लीजिए।’ लेकिन कर्पूरी जी ने बिना किसी भाव के कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा।’
सादा जीवन, उच्च विचार

दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर हमेशा रिक्शे से सफर करते थे। उनकी जायज आय उन्हें कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी। यह उनकी ईमानदारी और जनता के प्रति समर्पण का प्रतीक था।
करुणा और संवेदनशीलता
कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद जब हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए, तो उनकी पुश्तैनी झोपड़ी देखकर बहुगुणा की आंखें भर आईं। यह दृश्य कर्पूरी ठाकुर जी के संघर्षमय जीवन की सच्चाई को उजागर करता है।
प्रेरणादायक विचार

कर्पूरी ठाकुर का जीवन उनके संघर्ष और ईमानदारी की मिसाल है। उनके विचार और आदर्श आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा था, ‘चाहो तो लड़ना सीखो, पग-पग पर अड़ना सीखो। जीना है तो मरना सीखो।’ उनके ये शब्द हमें समाज में न्याय और समानता के लिए संघर्ष करने का मार्ग दिखाते हैं।
निष्कर्ष
कर्पूरी ठाकुर जैसे व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना कठिन है। वे भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक अमूल्य रत्न थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सादगी, ईमानदारी और संघर्ष के साथ एक सच्चे नेता का निर्माण होता है। उनके आदर्शों को अपनाकर हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।