दृष्टि बाधित बच्चों ने सुरों में पिरोया ऐसा संगीत बर्थडे गीत सुन छलक पड़ीं राष्ट्रपति की आंखें

देहरादून/20 जून, 2025

देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने तीन दिन के दौरे पर उत्तराखंड आईं हैं। शुक्रवार को उनके जन्मदिन के मौके पर देहरादून में हुए एक खास समारोह में दृष्टिबाधित बच्चों के मुंह से गीत से रूप में बर्थडे विश सुनकर उनके आंखों में बरबस आंसू निकल पड़े। उनके साथ मंच पर अन्य लोग भी भावुक हुए। लगातार बहते हुए आंसुओं को किसी तरह संभाल कर उन्होंने बच्चों की तारीफ करते हुए कहा कि वो गले से नहीं दिल से गा रहे थे।

राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में था खास आयोजन, उत्तराखंड सीएम व गवर्नर भी रहे मौजूद

दरअसल शुक्रवार को राष्ट्रपति का जन्मदिन और उनके देहरादून में होने के संयोग को खास बनाने के लिए राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मंच पर सीएम पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार और राज्यपाल गुरमीत सिंह भी मौजूद थे। स्वागत संबोधन व स्मृति चिन्ह देने की औपचारिकता पूरी होने के बाद मंच संचालक ने संस्थान के बच्चों से अपनी प्रस्तुति देने का आग्रह किया।

दृष्टि बाधित बच्चों की “बार बार दिन ये आये” गीत की मनमोहक प्रस्तुति पर भावुक हुईं राष्ट्रपति

बच्चों ने वाद्य यंत्रों से सुर लय मिलाते हुए प्रस्तुति की शुरुआत में फिल्म ‘तारे जमीं पर’ का गीत मोहक तरीके से प्रस्तुत किया। इसके बाद बारी आई राष्ट्रपति को जन्मदिन की शुभकामना देने की। यहां बच्चों ने फ़िल्म दुनिया का अमर गीत ‘बार बार ये दिन आये, बार बार ये दिल गाये, तुम जियो हजारों साल, ये है मेरी आरजू, हैप्पी बर्थडे टू यू’ गाना शुरू किया। सधे हुए सुरों में संगीत का साथ पाकर गीत के बोल राष्ट्रपति को भावुक करते गए। सामने दृष्टिबाधित बच्चों का गीत में भरा प्रेम देखकर उनकी आंखें छलक पड़ीं। उन्हें असहज होते देख अन्य अतिथि भी भावुक हुए। इसी दौरान पीछे बैठे उनके सुरक्षा अधिकारी ने माहौल भांपा और उन्हें रुमाल उठाकर दिया। बच्चे उनके आंसू नहीं देख पा रहे थे लेकिन राष्ट्रपति उनके प्रेम को महसूस कर रहीं थीं। प्रस्तुति खत्म होने पर तालियां गूंज उठीं।

राष्ट्रपति ने कहा… दिल से गा रहे थे बच्चे, इनके गले में था मां सरस्वती का वास

इसके बाद राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि वह इन बच्चों की प्रतिभा को देखकर बेहद प्रभावित हैं। हम जिस तरह से दिव्यांगजनों के लिए काम कर रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण देहरादून में देखने के लिए मिलता है. मैं अपने जन्मदिन पर यहां आकर बेहद खुश हूं। जब मैं बच्चों को गाते हुए देख रही थी, तो मेरे आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। यह बच्चे गले से नहीं हृदय से गा रहे थे। मुझे लगता है कि मां सरस्वती उनके गले में बैठी है. कहा जाता है कि भगवान किसी के अंग में अगर कोई कमी देता है, तो उसे एक ऐसी प्रतिभा दे देता है, जो लोगों से उसे अलग बनाती है। यहां उसी कुदरती नेमत की झलक देखने को मिली।

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Bindesh Yadav
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