बस्ती, उत्तर प्रदेश | 19 जून 2025:
बस्ती जनपद में कानून एवं विधि व्यवस्था की गिरती स्थिति ने एक बार फिर प्रदेश की शासन-प्रशासन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आम जनता के मुद्दों पर अब सरकार के अपने ही नेता आमरण अनशन करने को मजबूर हो गए हैं।
भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष आशीष शुक्ल ‘सैनिक’ जिले में बढ़ते अपराधों, बेलगाम नौकरशाही और पुलिस की कार्यशैली के खिलाफ़ शास्त्री चौक पर आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। उनका अनशन ‘एक रहेंगे, सेफ रहेंगे’ के नारे के साथ जारी है और जिले में राजनीतिक हलचल का केंद्र बन गया है।
पुलिस प्रशासन की नाकामी के आरोप
मीडिया से बात करते हुए आशीष शुक्ल ने कहा कि बस्ती जनपद में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। गंभीर आपराधिक मामलों में पुलिस न तो समय से कार्रवाई कर पा रही है और न ही खुलासे कर पा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कई मामलों में पुलिसकर्मी पीड़ितों के बजाय सवाल पूछने वालों को अपमानित करते हैं।
शुक्ल का कहना है कि जब तक मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक अनशन जारी रहेगा।
अनशन की प्रमुख माँगें:
- खुटहन गांव में करंट से दो सगे भाइयों की मृत्यु पर परिजनों को मुआवजा व दोषियों पर कार्रवाई।
- पैकोलिया के जीतीपुर में बालिका की हत्या पर थानाध्यक्ष पर FIR और पीड़ित परिवार को न्याय।
- लालगंज थाना क्षेत्र में मासूम दलित बालिका से दुराचार व हत्या के मामले में थाना पुलिस पर कड़ी कार्रवाई।
- मालवीय रोड पर जमीन विवाद में पुलिस की भूमिका की जांच और दोषियों पर सख्त कदम।
- कटेश्वर पार्क में बालिका से दुराचार में पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई।
- उभाई में युवक की हत्या मामले की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दोषियों को सजा।
शुक्ल ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिसकर्मी जमीनी विवाद और सामान्य मामलों में दोनों पक्षों से उगाही करते हैं, जिसे अब “सामान्य” बना दिया गया है।
विपक्ष ने दिया समर्थन
इस मुद्दे की गंभीरता और भाजपा के अंदरखाने नाराजगी को तब और बल मिला, जब सपा जिलाध्यक्ष एवं बस्ती सदर विधायक महेंद्र नाथ यादव खुद शास्त्री चौक पहुंचकर अनशन को समर्थन देने पहुंचे। इससे जिले की राजनीति में गर्माहट बढ़ गई और यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया।
प्रशासन की चुप्पी, जनता में असंतोष
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बस्ती जिला प्रशासन इस शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त विरोध को किस नजरिए से लेता है। क्या जनता के इन सवालों का कोई ठोस जवाब मिलेगा या यह आंदोलन भी अन्य आंदोलनों की तरह अनसुना रह जाएगा?