शारदा सिन्हा भारतीय लोक संगीत की वह प्रतिष्ठित हस्ती हैं जिन्होंने अपनी मधुर आवाज और समर्पण से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोक संगीत को पूरे देश और दुनिया में एक नई पहचान दिलाई। बिहार में जन्मी शारदा सिन्हा अपनी कला और लोक संगीत के प्रति असीम प्रेम के लिए जानी जाती हैं। पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे उच्चतम सम्मानों से सम्मानित शारदा सिन्हा का नाम लोक संगीत के क्षेत्र में बेहद आदर के साथ लिया जाता है। उनकी प्रस्तुति और उनका गहन समर्पण संगीत प्रेमियों के दिलों पर एक गहरी छाप छोड़ता है।
संगीत की शुरुआत और शारदा सिन्हा का सफर
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव में हुआ था। ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी शारदा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन साधारण था, लेकिन उनके अंदर लोक संगीत की एक अद्भुत ललक थी। लोक संगीत के प्रति इस स्वाभाविक लगाव को उन्होंने अपना जीवन बना लिया। उनकी संगीत यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने स्थानीय मंचों और त्योहारों में गाना शुरू किया। उनकी आवाज में एक अलग तरह की खनक और मिठास थी जो किसी भी श्रोता को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी।
उन्होंने संगीत की औपचारिक शिक्षा भी ली और अपने गायन में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। हालांकि उन्होंने विभिन्न प्रकार के गीत गाए, लेकिन उनके लोकगीतों ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई। ‘छठ पूजा’ के गीत गाने में उनकी विशेष रुचि थी, और उनके गीत बिहार के पारंपरिक छठ पूजा उत्सव का अनिवार्य हिस्सा बन गए।
लोक संगीत के प्रति उनका योगदान
शारदा सिन्हा का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने लोक संगीत को एक नए स्तर पर पहुंचाया और इसे मुख्यधारा में लोकप्रिय बनाया। उनके गाए गीतों में बिहार की संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज और सामान्य जीवन की झलक मिलती है। उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में ‘काहे तो से सजना’, ‘पान खाए सइयां हमरा वाले’, और ‘छठी माई के गीत’ शामिल हैं, जो आज भी विवाह और पारंपरिक समारोहों में सुने जाते हैं। उनके गीत केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें समाज की धड़कन और भावनाओं की अभिव्यक्ति भी होती है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान
शारदा सिन्हा ने बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई। उनकी आवाज का जादू इतना गहरा था कि लोग उनसे प्रेरणा लेकर लोक संगीत में करियर बनाने लगे। उन्हें संगीत के क्षेत्र में विभिन्न सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल हैं। उनके गीतों को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी खूब सराहा गया।
बॉलीवुड में भी शारदा सिन्हा ने अपनी आवाज का जादू बिखेरा। फिल्म हम आपके हैं कौन के गाने ‘बाबुल का ये घर’ और गैंग्स ऑफ वासेपुर के गाने ‘तार बिजली से पतले हमारे पिया’ में उनकी आवाज ने एक विशेष छाप छोड़ी, जिससे यह गाने अमर हो गए।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
शारदा सिन्हा ने अपनी जीवन यात्रा में अनेक चुनौतियों का सामना किया और अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने लोक संगीत के प्रति अपना योगदान निरंतर जारी रखा। उनके गीतों में सादगी और गहराई होती है जो आज की नई पीढ़ी के कलाकारों को लोक संगीत में रुझान पैदा करने की प्रेरणा देती है।
उनकी आवाज ने अनेक नए कलाकारों को प्रेरित किया है। शारदा सिन्हा का मानना है कि संगीत का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना और उसे सजीव रखना भी है।
लोक संगीत में उनका योगदान अमर रहेगा
शारदा सिन्हा का योगदान भारतीय लोक संगीत के क्षेत्र में सदैव जीवित रहेगा। उनकी आवाज और उनका संगीत हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में बसे रहेंगे। उन्होंने जिस शिद्दत और समर्पण से लोक संगीत को संजोया, उससे उनकी विरासत कभी न भूलने वाली रहेगी। उनके गीतों में जो संस्कृति और परंपरा की झलक है, वह उन्हें अमर बना देती है।
उनके गाए गीत हमेशा बिहार और उत्तर भारत की संस्कृति और परंपरा को जीवित रखेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
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