मध्य प्रदेश सरकार का नया भूमि अधिग्रहण कानून: किसानों के लिए खतरा?

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में पारित एक कानून ने किसानों के बीच गहरी चिंता और असंतोष पैदा कर दिया है। इस कानून के तहत सरकार किसानों की जमीन को बिना किसी तत्काल मुआवजे के अधिग्रहण कर सकती है, और बदले में वादा किया जा रहा है कि 50% जमीन विकास के बाद वापस लौटाई जाएगी। हालांकि, यह प्रस्ताव सतह पर भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसके पीछे छिपे नुकसान और जमीनी हकीकत को देखते हुए यह किसानों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। आइए, इस कानून के प्रभाव और इससे किसानों को होने वाले नुकसानों का विस्तार से विश्लेषण करें।

  1. तत्काल मुआवजे का अभाव और आर्थिक संकट
    किसानों के लिए उनकी जमीन सिर्फ संपत्ति नहीं, बल्कि उनकी आजीविका का आधार है। इस कानून के तहत सरकार जमीन लेने के बाद तुरंत कोई नकद मुआवजा नहीं दे रही है। इसके बजाय, 50% जमीन को विकसित करके लौटाने का वादा किया जा रहा है, जिसमें कई साल लग सकते हैं। इस बीच, किसान अपनी खेती, पशुपालन और अन्य कृषि गतिविधियों से होने वाली आय से वंचित हो जाएंगे। सवाल यह है कि इतने लंबे समय तक किसान अपना गुजारा कैसे चलाएंगे? ग्रामीण भारत में अधिकांश किसानों के पास न तो पर्याप्त बचत होती है और न ही वैकल्पिक आय के साधन। ऐसे में, यह कानून उन्हें आर्थिक संकट की गहरी खाई में धकेल सकता है।
  1. विकास की प्रक्रिया में देरी और सरकारी लालफीताशाही
    सरकार का दावा है कि अधिग्रहण की गई जमीन का 50% हिस्सा विकास के बाद किसानों को वापस मिलेगा। लेकिन भारत में सरकारी परियोजनाओं की गति और नौकरशाही की जटिलता किसी से छिपी नहीं है। सड़क, बांध, या औद्योगिक परियोजनाओं के उदाहरण देखें तो पता चलता है कि ऐसी योजनाएं अक्सर दशकों तक लटकी रहती हैं। इस दौरान किसानों को न तो अपनी जमीन का उपयोग करने का अधिकार होगा और न ही कोई मुआवजा। इसके अलावा, सरकारी दफ्तरों में सुनवाई के लिए किसानों को बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं, जहां उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं होता। यह प्रक्रिया न केवल समय लेती है, बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से भी किसानों को तोड़ देती है।
  1. जमीन का बाजार मूल्य और किसानों का नुकसान
    यह कानून खास तौर पर उन जमीनों को लक्षित करता है जो शहरी क्षेत्रों के नजदीक हैं। ऐसी जमीनों का बाजार मूल्य बहुत अधिक होता है, क्योंकि ये रियल एस्टेट, उद्योगों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए आकर्षक होती हैं। अगर किसानों को तुरंत उचित मुआवजा दिया जाए, तो वे उस पैसे से अपनी जरूरतें पूरी कर सकते हैं या दूसरी जगह जमीन खरीद सकते हैं। लेकिन इस कानून के तहत उन्हें नकदी के बजाय भविष्य में जमीन का वादा दिया जा रहा है, जिसका मूल्य और उपयोगिता अनिश्चित है। इससे किसानों को उनकी संपत्ति का वास्तविक मूल्य नहीं मिलेगा, और वे अपनी जमीन के बाजार मूल्य से होने वाले लाभ से वंचित रह जाएंगे।
  1. सरकार की मंशा पर सवाल और उद्योगपतियों का लाभ
    कई किसानों और आलोचकों का मानना है कि इस कानून के पीछे सरकार की मंशा साफ नहीं है। शहरी क्षेत्रों के पास की ये मूल्यवान जमीनें अक्सर बड़े उद्योगपतियों और डेवलपर्स के हित में इस्तेमाल होती हैं। यह संदेह जायज है कि सरकार इस कानून के जरिए किसानों की जमीन को कम कीमत पर हासिल कर अपने चहेते उद्योगपतियों को सौंपना चाहती है। विकास के नाम पर जमीन का एक हिस्सा उद्योगों या रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल हो सकता है, और किसानों को जो हिस्सा लौटाया जाएगा, वह शायद उतना उपयोगी या मूल्यवान न हो। यह एक तरह से किसानों की संपत्ति को हड़पने की रणनीति प्रतीत होती है।
  1. खेती और पशुपालन पर निर्भरता का अंत
    किसानों के लिए जमीन केवल आय का स्रोत नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और जीवनशैली का हिस्सा है। खेती के अलावा, वे गाय, भैंस और अन्य पशुओं को पालते हैं, जो उनकी जमीन पर उगने वाले चारे और फसल अवशेषों पर निर्भर करते हैं। जमीन के अधिग्रहण के बाद न तो उनके पास खेती का विकल्प बचेगा और न ही पशुपालन का। इससे उनकी पूरी आजीविका छिन जाएगी, और वे मजदूरी या अन्य अनिश्चित कामों के लिए मजबूर हो जाएंगे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में यह बदलाव न केवल किसानों, बल्कि पूरे समुदाय को प्रभावित करेगा।
  1. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
    जमीन छिनने का असर सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक भी होगा। भारत में किसानों की पहचान उनकी जमीन से जुड़ी होती है। जब यह छिन जाती है, तो उनका आत्मसम्मान और सामाजिक रुतबा भी प्रभावित होता है। इसके अलावा, अनिश्चित भविष्य और सरकारी प्रक्रियाओं में उलझने की मजबूरी से मानसिक तनाव बढ़ेगा। कई किसान परिवारों में पहले से ही कर्ज और गरीबी की समस्या है, और यह कानून उनकी मुश्किलों को और गहरा कर सकता है।
    निष्कर्ष

  2. मध्य प्रदेश सरकार का यह कानून सतह पर विकास का वादा करता है, लेकिन इसके पीछे किसानों के लिए कई छिपे खतरे हैं। तत्काल मुआवजे का अभाव, विकास में देरी, सरकारी लालफीताशाही, जमीन के बाजार मूल्य का नुकसान, और उद्योगपतियों के पक्ष में नीति का झुकाव – ये सभी पहलू मिलकर किसानों को उनकी आजीविका और सम्मान से वंचित कर सकते हैं। सरकार को चाहिए कि वह किसानों की सहमति, उचित और तत्काल मुआवजा, और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करे।
    अन्यथा, यह कानून न केवल किसानों के साथ अन्याय करेगा, बल्कि ग्रामीण भारत की रीढ़ को भी कमजोर कर देगा। किसानों के बिना देश की आत्मा अधूरी है, और उनकी अनदेखी किसी भी विकास की कीमत नहीं हो सकती।

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Bindesh Yadav
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I am an experienced Android and web developer with a proven track record of building robust and user-friendly applications for organizations, schools, industries, and commercial use. I specialize in creating dynamic and responsive websites as well as scalable Android apps tailored to specific business needs.I hold a Master of Computer Applications (MCA) from (IGNOU), and a Bachelor of Science (Honours) in CS fromDUI strongly believe in growth through learning and resilience. "Stop worrying about what you've lost. Start focusing on what you've gained."

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