मोदी सरकार ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम में बदलाव कर उसे इतना कमजोर बना दिया है कि अब भ्रष्टाचार उजागर करना लगभग असंभव हो गया है। यदि कोई पत्रकार या RTI एक्टिविस्ट सरकारी घोटालों का पर्दाफाश करता है, तो उस पर 500 करोड़ रुपये तक का भारी-भरकम जुर्माना लगाया जा सकता है। इस फैसले से पारदर्शिता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है और सरकारी तंत्र को जवाबदेही से मुक्त किया जा रहा है।
RTI संशोधन से पारदर्शिता पर हमला
सरकार द्वारा किए गए संशोधनों में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं, जो सीधे-सीधे सूचना के अधिकार को बाधित करते हैं। अब सरकार के पास किसी भी व्यक्तिगत सूचना को छुपाने का कानूनी अधिकार होगा। इसका मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति बैंक घोटाले, राशन कार्ड फ्रॉड, या वोटर लिस्ट धांधली से जुड़ी जानकारी RTI के माध्यम से मांगता है, तो उसे ‘व्यक्तिगत डेटा’ बताकर इनकार कर दिया जाएगा।
खोजी पत्रकारिता पर खतरा
नए नियमों के अनुसार, डिजिटल डेटा प्रोसेसिंग के बहाने खोजी पत्रकारिता को भी निशाना बनाया जा सकता है। इससे वे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रभावित होंगे जो घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करते हैं।
डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में भेदभाव
सरकार के पास अब यह अधिकार होगा कि वह जिसे चाहे डेटा प्रोटेक्शन एक्ट से बाहर कर दे और जिसे चाहे इस कानून के तहत रखे। यानी, सरकार अपने फायदे के लिए इस कानून का मनचाहा उपयोग कर सकती है।
सरकार तय करेगी कौन सा खुलासा अवैध!
RTI के तहत कौन सी जानकारी सार्वजनिक होगी और कौन सी ‘गोपनीय’ रखी जाएगी, इसका निर्णय अब एक सरकारी बोर्ड करेगा। यही बोर्ड यह भी तय करेगा कि किसी खुलासे पर कितनी पेनल्टी लगेगी। इसका सीधा असर यह होगा कि सरकार अपने खिलाफ किसी भी जानकारी को बाहर आने से रोकने के लिए इस कानून का दुरुपयोग कर सकती है।
जनता की आवाज दबाने की कोशिश
इन संशोधनों से स्पष्ट है कि मोदी सरकार जनता के सवालों से बचने और घोटालों को छुपाने का प्रयास कर रही है। RTI को कमजोर कर सरकार ने भ्रष्टाचारियों को बचाने का कानून बना दिया है। अब आम नागरिकों के लिए सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करना और भ्रष्टाचार को उजागर करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
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