जाने मकर संक्रांति का महत्व !

मकर संक्रांति हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो प्रत्येक वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है, जो कृषि, समृद्धि और जीवन में नई शुरुआत के साथ जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति को खासतौर पर उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, और यह एक दिन है जब लोग न केवल सूर्य की पूजा करते हैं, बल्कि अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली की कामना भी करते हैं।

मकर संक्रांति और सूर्य का कनेक्शन

मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के समय मनाई जाती है, जिसे खगोलशास्त्र के अनुसार एक अहम खगोलीय घटना माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं, जो एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं और प्रकृति में बदलाव लाते हैं। मकर संक्रांति का समय होता है जब सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध में तेज होती हैं, जो ठंड को कम करती हैं और जीवन को ताजगी देती हैं।

पर्व की पारंपरिक मान्यताएँ

मकर संक्रांति पर विशेष रूप से दान का महत्व है। इस दिन लोग गरीबों को तिल, गुड़, वस्त्र और अन्य सामग्री का दान करते हैं, क्योंकि इसे शुभ और पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से तिल और गुड़ के पकवान बनते हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ शीतकाल में शरीर को गर्मी भी प्रदान करते हैं। विशेषत: तिल गुड़ के लड्डू और तिल की चिक्की का सेवन इस दिन के खास भोजन का हिस्सा है।

मकर संक्रांति और खिचड़ी

उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का सेवन करना एक परंपरा बन चुका है। खासकर पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है। खिचड़ी का यह विशेष दिन किसानों के लिए भी खास होता है, क्योंकि यह फसल कटाई का समय होता है, और इस दिन को किसान अपने काम के बाद आराम और उत्सव के रूप में मनाते हैं। खिचड़ी खाने से न केवल शरीर को गर्मी मिलती है, बल्कि यह भी मान्यता है कि यह शुद्धिकरण और स्वस्थ जीवन की दिशा में योगदान करता है।

कुम्भ मेले और मकर संक्रांति

मकर संक्रांति के अवसर पर हर साल प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुम्भ मेला आयोजित होता है, जो विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। लाखों श्रद्धालु यहां आकर पवित्र स्नान करते हैं और पुण्य की प्राप्ति के लिए आस्था की डुबकी लगाते हैं। कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि यह एक सांस्कृतिक महापर्व भी है, जहां हर प्रकार के लोग अपनी श्रद्धा और विश्वास को व्यक्त करने के लिए एकत्र होते हैं।

देश भर में मकर संक्रांति के विविध रूप

मकर संक्रांति को विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है और यहां पर इसे विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।

  • उत्तर भारत में इसे ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है, जहां लोग उबले हुए चावल, दाल और तिल का सेवन करते हैं।
  • महाराष्ट्र में इसे ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग आग के पास बैठकर तिल और गुड़ की सामग्रियां अर्पित करते हैं।
  • तमिलनाडु में इसे ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है, जो एक प्रमुख कृषि पर्व है।
  • कर्नाटका में इसे ‘साक्रांति’ कहा जाता है, जहां लोग आमंत्रण पत्रों और रेवड़ी का आदान-प्रदान करते हैं।

संक्रांति और सोशल मीडिया

आज के डिजिटल युग में, मकर संक्रांति का पर्व सोशल मीडिया पर भी धूम मचाता है। लोग इस दिन की शुभकामनाएं और फोटो साझा करते हैं, विशेषकर पतंगबाजी की तस्वीरें जो इस पर्व का एक अहम हिस्सा हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अपनी खुशियों और अच्छे विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, जिससे यह पर्व और भी अधिक सामाजिक बन जाता है।

मकर संक्रांति का संदेश

मकर संक्रांति का पर्व एक सकारात्मक बदलाव और नई शुरुआत का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि जैसे सूर्य का उत्तरायण होना जीवन में नई ऊर्जा और आशा लेकर आता है, वैसे ही हमें अपने जीवन में सकारात्मक बदलावों को अपनाना चाहिए। यह पर्व हमें रिश्तों को मजबूत बनाने, खुशी साझा करने और दूसरों की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।

निष्कर्ष

मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि यह जीवन के सकारात्मक बदलाव और समृद्धि का प्रतीक भी है। यह समय है जब हम पुराने व दुखी अनुभवों को छोड़कर नए लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं और नए अवसरों की ओर कदम बढ़ाते हैं। इस पावन पर्व पर हम सभी एकजुट होकर खुशियों का आदान-प्रदान करें और जीवन को एक नई दिशा में आगे बढ़ाएं।

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