हिन्दी ही पूरे देश को एक सूत्र में पिरो सकती है-ओम प्रकाश आर्य !

स्वामी दयानन्द पूर्व माध्यमिक विद्यालय में हिन्दी दिवस बड़े धूम धाम से मनाया गया इस अवसर आधुनिक परिवेश में हिन्दी की महत्व विषय पर निबन्ध प्रतियोगिता करायी गयी जिसमें कक्षा 5से कक्षा 8 तक के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।
बच्चों पुरस्कार व सम्मान प्रदान करते हुए विद्यालय के प्रबंधक ओम प्रकाश आर्य ने कहा कि भारतवर्ष के इतिहास में महर्षि दयानन्द पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने पराधीन भारत में सबसे पहले राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए हिन्दी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण जानकर मन, वचन व कर्म से इसका प्रचार-प्रसार किया।

उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि हिन्दी शीघ्र लोकप्रिय हो गई। यह ज्ञातव्य है कि हिन्दी को स्वामी दयानन्द जी ने आर्यभाषा का नाम दिया था। स्वतन्त्र भारत में 14 सितम्बर 1949 को सर्वसम्मति से हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किया जाना भी स्वामी दयानन्द जी के इससे 77 वर्ष पूर्व आरम्भ किए गये कार्यों का ही सुपरिणाम था। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर हमारे राष्ट्रीय जीवन के अनेक पहलुओं पर स्वामी दयानन्द का अक्षुण प्रभाव स्वीकार करते हैं और हिन्दी पर साम्राज्यवादी होने के आरोपों को अस्वीकार करते हुए कहते हैं कि यदि साम्राज्यवाद शब्द का हिन्दी वालों पर कुछ प्रभाव है

भी, तो उसका सारा दोष अहिन्दी भाषियों का है। प्रधानाध्यापक आदित्यनारायण गिरि ने कहा कि स्वामी दयानंद ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम को असफल होते देखा था और उस के असफल होने का मुख्य कारण भारतीय समाज में एकता की कमी होना था। स्वामी दयानंद ने इस कमी को समाप्त करना आवश्यक समझा। उन्होंने चिन्तन-मंथन किया कि अगर भारत देश को एक सूत्र में जोडऩा है तो उसकी एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है।

यह रिक्त स्थान अगर कोई भर सकता था तो वह हिंदी भाषा थी। उन्होंने बच्चों से अपनी बोलचाल एवं व्यवहार में हिन्दी भाषा को अपनाने का सुझाव दिया।
अनूप कुमार त्रिपाठी ने बताया कि स्वामी दयानंद द्वारा सर्वप्रथम 19 वीं सदी के चौथे चरण में एक राष्ट्र भाषा का प्रश्न उठाया गया और स्वयं गुजराती भाषी होते हुए भी उन्होंने इस हेतु आर्यभाषा (हिंदी) को ही इस पद के योग्य बताया। अपने जीवन काल में स्वामीजी ने भाषण, लेखन, शास्त्रार्थ एवं उपदेश आदि हिंदी में देने आरंभ किये जिससे हिंदी भाषा का प्रचार आरंभ हुआ और सबसे बढ़कर जनसाधारण के समझने के लिए हिंदी भाषा में वेदों का भाष्य किया। इससे हिन्दू साहित्य और भाषा को नये उपादान प्रदान किये और प्रत्येक आर्यसमाजी के लिए हिंदी भाषा को जानना प्राय: अनिवार्य कर दिया गया।
कार्यक्रम का सफल संचालन आदित्य नारायण गिरी जी ने हिन्दी से संबंधित सामान्य की जानकारी दी।
इस अवसर पर शिक्षक नितीश कुमार, दिनेश मौर्य, अरविन्द श्रीवास्तव, अनीशा मिश्रा, महक मिश्रा , पूजा गौतम, आकृति द्विवेदी, शिवांगी सहित विद्यालय के सभी बच्चे सम्मिलित रहे।
गरुण ध्वज पाण्डेय

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