स्वामी दयानन्द विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती में वैदिक यज्ञ कर महान क्रांतिकारी स्वामी श्रद्धानंद की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक ओम प्रकाश आर्य ने बताया कि देश और दुनिया में वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। वेभारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त सन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था।
उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय सहित अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज व भारत को संगठित करने तथा 1920 के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की। डॉ भीमराव आम्बेडकर ने सन १९२२ में कहा था कि श्रद्धानन्द अछूतों के “महानतम और सबसे सच्चे हितैषी” हैं। आर्य वीर दल दिल्ली प्रदेश से पधारे दिनेश आर्य ने यज्ञ में आहुतियां दिलाते हुए कहा कि स्वामी श्रद्धानंद , ये नाम सामने आते ही मस्तिष्क में ऊंचा कद, चेहरे पर गंभीरता, वाणी में दृढ़ता लिए एक महामानव का नाम स्मरण हो जाता हैं।
स्वामी श्रद्धानंद को महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने कर-कमलों से गढ़ा और राष्ट्र-सेवा के लिए प्रेरित किया। प्रधानाध्यापक आदित्यनारायण गिरी ने अफ़सोस जताते हुए कहा कि जिस स्वामी श्रद्धानंद ने 20 लाख से अधिक लोगों को दोबोरा हिन्दू बनाया उन्हें ज्यादातर लोग जानते तक नहीं है. यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि जिस विराट व्यक्तित्व को यह सौभाग्य प्राप्त है की उन्होंने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया। जन्मोत्सव सभा में विद्यालय के समस्त छात्र छात्राओं एवं शिक्षक शिक्षिकाओं ने अपने अपने विचार रखे।
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