भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत 1600 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से हुई। व्यापार के बहाने कंपनी ने धीरे-धीरे भारतीय राजाओं और रियासतों पर अपना अधिकार जमा लिया। 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, जिससे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़ी। अगले 200 वर्षों तक, ब्रिटिश सरकार ने भारत पर शासन किया और यहाँ के संसाधनों का शोषण किया।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857):
ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत का पहला बड़ा विद्रोह 1857 में हुआ, जिसे “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” या “1857 का विद्रोह” कहा जाता है। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों और भारतीय सिपाहियों के साथ हुए अन्याय के कारण भड़का। हालांकि यह विद्रोह सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी और ब्रिटिश हुकूमत को भारतीय जनता की शक्ति का अहसास कराया।
स्वतंत्रता आंदोलन का उदय
19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने जोर पकड़ा। इस आंदोलन का नेतृत्व कई महान नेताओं ने किया, जिनमें महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, भगत सिंह, और अन्य शामिल थे।
गांधी जी और अहिंसात्मक आंदोलन:
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का उपयोग किया। 1915 में भारत लौटने के बाद, गांधी जी ने कई आंदोलन चलाए, जिनमें असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) प्रमुख थे। इन आंदोलनों ने देशभर में जन जागरूकता पैदा की और ब्रिटिश शासन की जड़ों को कमजोर किया।
द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन:
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं की अनुमति के बिना भारत को युद्ध में शामिल कर लिया। इसने भारतीय जनता में गुस्से और असंतोष को बढ़ाया। 1942 में महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की और “करो या मरो” का नारा दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ाया और स्वतंत्रता की मांग को और तेज कर दिया।
स्वतंत्रता की घोषणा:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश साम्राज्य की आर्थिक और सैन्य स्थिति कमजोर हो गई थी। इसके साथ ही भारतीय जनता का दबाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती आलोचना ने ब्रिटिश सरकार को भारत की स्वतंत्रता पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया।
1946 में ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन भेजा, जिसने भारतीय नेताओं के साथ बातचीत की। हालांकि, भारत के हिंदू-मुस्लिम विवाद के कारण देश का विभाजन तय हो गया। 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश संसद ने “इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट” पास किया, जिसके तहत भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियनों – भारत और पाकिस्तान – के रूप में स्वतंत्रता दी गई।
स्वतंत्रता दिवस की सुबह:
15 अगस्त, 1947 की सुबह, भारत में स्वतंत्रता की घोषणा की गई। दिल्ली के लाल किले पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय तिरंगा फहराया और स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए अपने ऐतिहासिक भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” दिया। इस भाषण में नेहरू जी ने कहा, “बहुत सालों पहले हमने नियति के साथ एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वादे को पूरा करें।”
विभाजन और इसका प्रभाव:
भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन भी हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का गठन हुआ। यह विभाजन बेहद दर्दनाक और हिंसक था, जिसमें लाखों लोगों की जानें गईं और कई लोग बेघर हो गए। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगों की घटनाएं हुईं। विभाजन का दर्द आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के दिलों में महसूस किया जाता है।
स्वतंत्र भारत का भविष्य:
स्वतंत्रता के बाद भारत ने खुद को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया। 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ, जो विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसके बाद से भारत ने कई सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
निष्कर्ष:
15 अगस्त का दिन भारत के लिए गर्व, सम्मान, और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह दिन हमें हमारे पूर्वजों के बलिदानों और संघर्षों की याद दिलाता है और हमें प्रेरित करता है कि हम अपने देश की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हमेशा तैयार रहें।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ!
Basti News: दुष्कर्म के आरोपी का शव पेड़ से लटका मिला, आत्महत्या का शक