आखिर क्यों उठ रही है अमित शाह की इस्तीफे मांग जाने पूरा मामला ?

संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषण का एक छोटा सा अंश यह स्पष्ट करता है कि भाजपा केवल “समावेशी राजनीति” का दिखावा करती है। यह पार्टी प्रतीकात्मक राजनीति में विश्वास करती है, जहां वंचित वर्गों को चुनावी समीकरण साधने का माध्यम बनाया जाता है।

डॉ. आंबेडकर के विचारों की अनदेखी


अमित शाह और भाजपा, संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की विचारधारा के विपरीत राजनीति करती दिखाई देती है। जिस संविधान की शपथ लेकर सत्ता में बैठा गया है, उसकी मूल भावना को सम्मान देने में भाजपा अक्सर असफल रही है। डॉ. आंबेडकर ने ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहां जाति और जातिवाद का कोई स्थान न हो और हर नागरिक को समान अधिकार और गरिमा मिले।

संविधान के प्रमुख अनुच्छेदों की प्रासंगिकता
डॉ. आंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेदों के माध्यम से समानता, न्याय और समावेशिता को समाज में स्थापित करने की नींव रखी:

  • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता।
  • अनुच्छेद 15 और 17: भेदभाव और अस्पृश्यता का निषेध।
  • अनुच्छेद 46: वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान।

इन सिद्धांतों का उद्देश्य जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना था।

भाजपा और आरएसएस का विरोधाभास
आरएसएस और भाजपा दोनों पर जातीयता और जातिवाद का आरोप लगता है। संघ के इतिहास में कभी भी अवर्ण व्यक्ति को सरसंघचालक नहीं बनाया गया। भाजपा प्रतीकात्मक राजनीति का सहारा लेकर खुद को समावेशी दिखाने का प्रयास करती है। 2017 में रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाना इसी रणनीति का हिस्सा था। लेकिन जब 2020 में राम मंदिर भूमि पूजन हुआ, तो उन्हें आमंत्रित तक नहीं किया गया।

यह दर्शाता है कि भाजपा दलितों और वंचितों को केवल “सांकेतिक चेहरे” के रूप में देखती है। यह दलित समुदाय को वास्तविक अधिकार और सम्मान देने से परहेज करती है।

डॉ. आंबेडकर के सपनों के विपरीत राजनीति


डॉ. आंबेडकर ने जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समानता पर आधारित समाज की परिकल्पना की। भाजपा और संघ की राजनीति उनके सपनों के विपरीत है। “वन नेशन, वन इलेक्शन” और “वक्फ बोर्ड” जैसे मुद्दे भाजपा की रणनीति का हिस्सा हैं, जिनका उद्देश्य केवल रूढ़िवादी वोट बैंक को साधना है।

डॉ. आंबेडकर का संविधान: उम्मीद की रोशनी
डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और बंधुत्व का प्रतीक है। उनकी विचारधारा भारत के विकास और समावेशी समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है।

भाजपा की प्रतीकात्मक राजनीति और जातिवाद के बावजूद, डॉ. आंबेडकर का संविधान आज भी भारत के लिए समानता और न्याय का स्तंभ है। इसे बनाए रखना और उसका पालन करना हर नागरिक और राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है।

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